Monday, August 22, 2016
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है अब इश्क किया तो सब्र भी कर, इसमें तो यही कुछ होता है आगाज-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शरारत से आँखों में फूल खिलाता है, तलवों में कांटे बोता है
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