जब मिटा के शहर गया होगा
एक लम्हा ठहर गया होगा
है, वो हैवान ये
माना लेकिन
उसकी जानिब भी डर गया होगा
तेरे कुचे से खाली हाथ लिए
वो मुसाफिर किधर गया होगा
ज़रा सी छाँव को वो जलता बदन
शाम होते ही घर गया होगा
नयी कलियाँ जो खिल रही फिर से
ज़ख़्म ए दिल कोई भर गया होगा
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