मुझे इकरार करना
है,
कि अब तुम मेरे ख़्वाबों में,
कि अब तुम मेरे ख़्वाबों में,
ख़्यालों में
नहीं आते
मेरी तन्हाइयों में,दर्द मैं ज़ख़्मों में,
छालों में नहीं आते
मगर इतना तो है कि तुम…
मुझे हर सुबह,कभी शबनम,
कभी गुंचा,कभी ख़ुशबू,कभी चिडिया…
हर एक शय में,हर एक एहसास में,
छूकर गुज़रते हो,
मेरा हर दिन तुम्हारा नाम लेकर ही
सफ़र आगाज़ करता है…
मेरी तन्हाइयों में,दर्द मैं ज़ख़्मों में,
छालों में नहीं आते
मगर इतना तो है कि तुम…
मुझे हर सुबह,कभी शबनम,
कभी गुंचा,कभी ख़ुशबू,कभी चिडिया…
हर एक शय में,हर एक एहसास में,
छूकर गुज़रते हो,
मेरा हर दिन तुम्हारा नाम लेकर ही
सफ़र आगाज़ करता है…
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