मैं बिखर गया हूँ समेट लो, मैं बिगड़ गया
हूँ संवार दो,
तुम को कैसी लगी शाम मेरी ख्वाहिशों के दीदार
की।
जो भली लगे तो इनको चाहत से अपने निखार दो,
वहां घर में कोन है मुन्तजिर के फिकर हो देर
सवेर की।
बड़ी मुह्तासिर सी ये रात है इसे चांदनी में
गुजार दो।
मैं बहोत दिनों से उदास हूँ मुझे एक शाम उधार
दो।
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