Friday, April 28, 2017

जब से मैने वो हँसी सा पैकर देखा है
झूमता गाता हुआ हर मंज़र देखा है
राह में मिलनेवालों से लेते हैं अपनी ही खबर
भूले अपना घर जब से उसका घर देखा है
फूलों में भी अब देखो इक नई सी रंगत आई है
बागों ने भी शायद रूप-समंदर देखा है
इश्क़ में चैन जो पाया हमने और कहीं नहीं पाया
वरना हमने भी मस्जिद और मंदर देखा है
सच ही कहती है दुनिया के इश्क़ में नींद नहीं आती
हमने भी वो रातजगे का मंज़र देखा है
जिनकी बात सुना करते थे हम हर इक अफ़साने में
हमने भी उन एहसासों को छूकर देखा है

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