Friday, April 28, 2017

तुमने मुड़कर भी नहीं देखा मुझे जाते जाते
एक तकल्लुफ़ ही सही जिसको निभाते जाते
क्या ख़ता थी के टूट गये हैं सब रिश्ते
ये तो जाते हुए तुम मुझको बताते जाते
ना इख़लास कोई ना ही शिकायत कोई
कोई एहसान सही वो ही जताते जाते
संभलना कैसे है मुझको तेरे जाने के बाद
कम से कम ये ही हुनर मुझको सिखाते जाते
बड़ा हैरां सा परेशां सा भटकता हूं अब
कोई राह नई मुझको दिखाते जाते
अब भी उम्मीद है कभी मिल जाओगे तुम
किसी राह पर मुझको कहीं आते जाते

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