Wednesday, May 10, 2017

हूँ चल रहा उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल नहीं
है जुस्तजू उस शख़्स की जो कभी हासिल नहीं
वहम जाने ये मेरे इस दिल को क्योंकर हो गया
कुछ भी कर लूं मै मगर मै जीत के काबिल नहीं
मै खड़ा हूँ आज देखो इश्क़ की दहलीज़ पर
पार निकलूं या रुकूं इस से बड़ी मुश्किल नहीं
एक महफ़िल में हज़ारों महफ़िलें हैं हर तरफ़
दिल में तन्हाई की महफ़िल क्या कोई महफ़िल नहीं
ज़िंदगी बेमक़सदी का दूसरा इक नाम है
कह दो किस की ज़िंदगी में दर्द ये शामिल नहीं

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