Wednesday, May 24, 2017

तेरे शिकवों में कुछ, कमी सी है,
सूखी बर्फ चश्मों में, जमी सी है॥

किस मायने बताऊ, जो सच लगे,
हिम्मत की तुझमे, कमी सी है॥

देख ही पाती तू, तो देख ना लेती,
क्यूँ एक लम्हे में, थमी सी है॥

अरसे हुए घर में, शमा जले हुए,
शमा लिए आज भी, नमी सी है॥

तेरे अश्क लगते है, समंदर मुझे,
मुहब्बत फैली हुई, सरजमीं सी है॥

क़ैद हूँ आज भी, जुल्फों में तेरी,
जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है॥

No comments:

Post a Comment