तलब रूह की रूह से मिट जाए
गर तलबगार बन कर तू आ जाये
रूहे-बंधनो में यू हम जकड़ जाये
खबर खुद की भी हमे न हो पाए
न लब हिले न लफ्ज़ बोला जाए
खामोश हो जाते रूहे मिलन पाये
मिलना है रूहो को कौन रोक पाए
रूहे मिलन है मिलकर ही चेन पाये
---- सुनिल #शांडिल्य
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