कुछ पन्ने छुपाकर
रख दिये है,
रात के परत दर परत
नीचे मन के अंधेरों में कही
जिनपर शब्दो से
खुरच-खुरचकर कभी
चाँद उकेरा करता था
बहुत कुछ गढ़ा था
रंग भरा था
ये पन्ने अंतर्मन मे
अब सुलगते हैं
जल कर बुझ जाने को
तरसते हैं अधूरे से
कुछ पन्ने
छुप छुप कर बरसते है
ये कुछ पन्ने
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment