Friday, August 25, 2023

साहित्य के सरस हिडोलों पर ..
रह रह मनुहार बरसते हैं 
नद निर्झर सागर के सपने ..
लहरों की पलक पर  तिरते हैं 

ये काव्य जगत की सुन्दरता ..
भरती है पुलक लताओं में 
कांपती सी तन की परछाईं .. 
भरती सिरहन सी हवाओं में 

छन छन जल बूँदों के नूपुर .. 
बँधते हैं सृष्टि के  पाँवों में,
सतरंगी इन्द्र धनुष आभा ..
रचती है मेंहदी भावों में।

मधु स्वर-लहरी झंकृत हो कर ..
गूंजे जब दसों दिशाओं में,
अनुपम तरँग ध्वनि छा जाये  ..
बंधन को तोड़ फ़िज़ाओं में।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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