Sunday, July 26, 2015

जब नमाज़-ए-मुहब्बत अता कीजिये
इस गैर को भी शरीक-ए-दुआ कीजिये
आँख वाले ही नज़रें चुराते रहे
आइना क्यूँ ना हो, सामना कीजिये
दरिया-ए-अश्क आ भी जाएँ तो क्या
चंद कतरे ही तो हैं, पी लिया कीजिये
आप का घर सदा जगमगाता रहे
राह में भी दिया रख दिया कीजिये
ज़िन्दगी है आसान समंदर में सनम
साहिलों का भी कभी तजुर्बा कीजिए !!!!

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