Sunday, July 26, 2015

इतना भी किसी को न चाहो खुद जान पे अपनी बन आये !
ये कभी खुद तेरे लिए ना कोई मुसीबत बन जाए !!
चाहत को चाहत रहने दो और इतना ध्यान राहे हरदम !
बढ़ते बढ़ते इतनी ना बढे ना मिले तो आफत हो जाए !!
ये इश्क खुदा कि देन तो है लेकिन उस देन से क्या हासिल !
जिसके आंचल म आते ही आंचल ही सारा फट जाए !!
देने को तो दे दू नाम कोई तेरे चाहत के रिश्ते को !
पर डरता हूँ कि तेरी चाहत भी कहीं बदनाम ना हो जाए !!
यार से इतने शिकवे गिले क्या सोच के तुम करने बैठे !
क्या होगा अगर तेरा यार भी अपने गिले निकालने लग जाए !!

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