Friday, August 7, 2015

जब थे जिंदा तो नहीं था हमारे लिए,
किसी के भी पास दो पल का वक़्त,
और आज ये जनाजे में भीड़ बढती जा रही है,
दो कदम भी कोई साथ ना चला,
और आज चार कांधे उठाये जा रहे हँ,
जिंदगी भर ढूंढ़ते रहे अपनों में अपनों को,
और आज ये इतने अनजाने भी अपने हँ,
हंसकर बात करने का वक़्त नहीं था इनके पास,
और आज याद में हमारी सब बेसुध हो रहे हँ,
ए मौत आज दिल से तुझको है हमारा सलाम,
हम तो उम्र भर रोते रहे इस जिंदगी के लिए,
जिंदगी से तो ये मौत ही भली लगती है आज,
जो अपने हँ बस हमारे ही पास बस पास.

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