Friday, September 25, 2015

मै अपनी कश्ती हर मझधार में पार लगा देता
ये हवाओं बस तुम्हारा जरा सा सहारा मिला होता
अपनी चाहतों के चराग यूँ ना बुझने देता कभी
ये आँधियों तुम्हे जरा सा तरस जो आया होता,



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