Thursday, November 19, 2015
फरेब थी हसी मैं आशिकी समझ बैठा
,
मौतको ही अपनी ज़िंदगी समझ बैठा
,
वक़्त का मज़ाक था या बदनसीबी मेरी
उसकी दो बातोंको
मैं चाहत समझ बैठा
…
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