Thursday, November 19, 2015
जो मोहबत-ए-फ़िक्र ना होती
,
हम तुम्हे भूल जाते सनम
,
क्यू रातों की नींदो को फिर अपनी गवाते हम
,
रहा बाकी क्या आ ज़रा मुझ में तो देख
….
एक तेरा चेहरा जिसे दिन रात आँखो में सजाते है हम.
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