Thursday, May 5, 2016

राह-ए -आशिक़ी के मारे राह-ए -आम तक न पहुंचे,
कभी सुबह तक न पहुंचे, कभी शाम तक न पहुंचे.
बर्बाद-ए-आशिकी मे तेरी, हम इस अंजाम तक पहुंचे।
कैसी सुबह-क्या शाम, कदम जब मीना-ओ-जाम तक पहुंचे॥
- शकील बदायुनी 

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