Thursday, June 16, 2016

इश्क का सर-ए-निहां जां-तपन है जिस से
आज इकरार करें और तपिस मिट जाए
हर्फ़-ए-हक़ दिल में खटकता है जो कांटे की तरह
आज इज़हार करें और खलिश मिट जाए
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फैज़ अहमद फैज़

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