काटी तमाम उम्र फरेब-ए-बहार में
कांटे समेटते रहे फूलों के नाम से
ये और बात है कि 'अली' हम ना सुन सके
आवाज़ उसने दी है हमें हर मुकाम से
-अली अहमद ज़लीली
कांटे समेटते रहे फूलों के नाम से
ये और बात है कि 'अली' हम ना सुन सके
आवाज़ उसने दी है हमें हर मुकाम से
-अली अहमद ज़लीली
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