Saturday, June 4, 2016
पत्थर के खुदा
,
पत्थर के सनम पत्थर ही के इंसान पाए हैं
तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते हो
,
हम जान बचा के आये हैं
हम सोच रहे थे मुद्दत से
,
अब उमर गुजारें भी तो कहाँ
,
सहरा में खुशी के फूल नहीं
,
शहरों में ग़मों के साए हैं।
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