Thursday, December 29, 2016
शायद यह ज़िंदगी की भूल हो
मुझे यह ज़ोख़िम उ
ठा
ना होगा
लाए हम
अ
पने घर कातिल को
देना है मंज़िल-ए-अंजाम इश्क़ को
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