Wednesday, February 22, 2017

मै सजदे में उनके कुछ यूँ झुका था
वो शरम कर के बोले सर को उठा लो
हैं आँखों का काजल घटाओं सा फ़ैला
कहीं हो ना बारिश ये नज़रें झुका लो
ग़म मुझको देकर वो मुस्का के बोले
तुम्हारी अमानत है तुम ही संभालो
वो नीची नज़र की क़यामत तो देखी
ये जलवा भी देखें निगाहें मिला लो
ज़माने की नज़रें बड़ी बेरहम हैं
ज़रा अपनी चिलमन को फिर से लगा लो
ये धड़कन रुकी है तो फ़र्क़ क्या है
मोहब्बत रुकी हो तो मय्यत उठा लो

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