टूटे ख्वाबो को पैरो तले रोंधते चले जा रहे है
खुद ही आपने कदमो के निशान सजा रहे है
क्या सवाल करें ज़िंदगी से, अब भी पहेलिया
बुजाते रहे
तेरी बंदगी में ए-मलिक खुद को जला रहे है
अब क्या करे उमीद की इस काली रात के बाद उजाला होगा
चन्द खुशियो के सहारे कफ़न अपना बना रहे है
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