जीने का कोई बहाना नही
फिर भी जिये जा रहा हूँ मै
जिन्दा होकर जिन्दा नही
खुद का मातम मना रहा हूं में
अहसासों को समझा नही
तभी यू अश्क बहा रहा हूँ मै
वो मेरी किस्मत में ही नही
फिर भी इश्क कर रहा हूँ मै
जिस्म से हमे सरोकार नही
अहसासों में उसके जलता हूं में
---- सुनिल शांडिल्य
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