सारी कायनात से है गुलामी करवाई
तबाही तेरे हुस्न ने कुछ ऐसी है मचाई।
तेरे हुस्न के दीदार को हो रहा बेताब
मेरे दिल मे तूने कैसी ये आग लगाई ।
आंखों पर मेरी सिर्फ़ तेरा अक्स छाया
आंखो से तूने ये कैसी है शराब पिलाई ।
बेवजह मौत से डरता रहा अब तलक
तूने होठों पर जीती जागती मौत दबाई ।
---- सुनिल शांडिल्य
No comments:
Post a Comment