Saturday, June 26, 2021

 पिघलो और पिघलाती रहो

मेरी सांसो मे यू ही आती जाती रहो


ठंड की क्या है

बिसात जो मुझे छु भी ले

मैं अभी प्रेयसी की पनाहो में हूं


नशा छाया तेरे हुस्न का

सारी रात ना उतर पाया


बीती रात करवटों मे

ना उसे नींद आई

ना मुझे ख्वाब आया

भीग गया बदन दोनो का

ये देख सर्द रात भी खुद पे शर्माया


---- सुनिल शांडिल्य

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