इश्क़ में मशरूफ था जमाना ,
हम तो सफ़र पे निकले थे..!!
क्या नज़्में,क्या ग़ज़लें
हम तो सिर्फ दर्द ही अब लिखेंगे..!!
याद करके सारी रात उनको ,
नींद चैन की हमें ना आयी..!!
लिखते लिखते कहीं कलम टूट ना जाए ,
दर्द इतने सारे है कहीं पन्ने कागज के कम ना पड़ जाए..!!
---- सुनिल शांडिल्य
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