नदी का किनारा वो बहका नजारा
वो शाम-ए-गजल वो उजली किरण
फूलों से नाजुक महकता बदन
लब है तुम्हारा के खिलता कमल
झुकी सी नजरें लटें लबों तक
तुम्हारा आना दिलों की लब-डब
तेरा मचलना मेरा बहकना
एक ही ख्याल में हमेशा जगना
यूँ बातों बातों में जिक्र तुम्हारा
रह रह कर फिकर तुम्हारा ।।
---- सुनिल शांडिल्य
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