पसीने से भींगी तुम
नख से शिख तक..
यूं लगती हो जैसे..
भींगा कोई कमल दल
जैसे..
चांदनी में नहाई रातरानी का पुष्प
ओस की बूंदों से तर हरी दूब
खुशबू तेरी मादक
जैसे..महुए का पुष्प
जो पास आऊं मैं तेरे
नशे में झूमे मन मेरा बावरा
---- सुनिल शांडिल्य
No comments:
Post a Comment