प्रेम की पुस्तक मे
मेरी चाहत,
का तुम अक्षर देखो ...
कैसे झुका हुआ है
इस धरती,
पर तुम अम्बर देखो ...
तुम को देखा लगा
जैसे सुबह,
की धूप खिली प्रिये ...
मन है कि कभी
तुम मुझे,
चुपके से छू कर देखो ...
---- सुनिल शांडिल्य
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