Friday, July 30, 2021

 बांध रखा तूने मुझे अहसासों की डोरी से

तुझ बिन ये दिन-रात लगते है बुझे-बुझे से


तुम हुए मेरी रूह के अहसास-ए-खुदा से

भुला मंदिर-मस्जिद तुम हुए मेरे रूहे-रब से


तुम बिन इक-इक पल लगते है बरसो से

कब बरसाओगे अहसास तुम सावन बादल से


---- सुनिल शांडिल्य

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