बांध रखा तूने मुझे अहसासों की डोरी से
तुझ बिन ये दिन-रात लगते है बुझे-बुझे से
तुम हुए मेरी रूह के अहसास-ए-खुदा से
भुला मंदिर-मस्जिद तुम हुए मेरे रूहे-रब से
तुम बिन इक-इक पल लगते है बरसो से
कब बरसाओगे अहसास तुम सावन बादल से
---- सुनिल शांडिल्य
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