Saturday, September 18, 2021

 तुम मंद हवा

का इक झोंका ,

जो मेरी रूह को छू जाती है


तुम वृक्ष की शाखा पर

बैठी एक कोयल ,

जिसकी कुंक मेरे अंग-अंग को

मिठास से भर देती


तुम आसमान से

गिरने वाली बूंद ,

जिसका मैं और यह धरा

दोनों ही चीर काल से मुंतजिर


इस उम्मीद पर कि तुम एक दिन आओगी

और हमारी प्यास बुझा दोगी


---- सुनिल #शांडिल्य

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