तुम मंद हवा
का इक झोंका ,
जो मेरी रूह को छू जाती है
तुम वृक्ष की शाखा पर
बैठी एक कोयल ,
जिसकी कुंक मेरे अंग-अंग को
मिठास से भर देती
तुम आसमान से
गिरने वाली बूंद ,
जिसका मैं और यह धरा
दोनों ही चीर काल से मुंतजिर
इस उम्मीद पर कि तुम एक दिन आओगी
और हमारी प्यास बुझा दोगी
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment