एक लौ मद्धम ही सही
पर जल रही है
हर शाम तेरी कमी
बहुत खल रही है
तेरे सपनो में खोने से
अब डर लगता है
लेकिन,
कोई कह गया
ये रात ढल रही है
पर दिल में वो इक एहसास
आज भी पल रही है
सब जज्बातों का खेल है
धीरे धीरे मेरी उम्मीदें भी ढल रही है
और मैं भी
राफ्ता राफ्ता ढल !!!!!!!!!
---- सुनिल #शांडिल्य
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