Thursday, October 28, 2021

 एक लौ मद्धम ही सही

पर जल रही है


हर शाम तेरी कमी

बहुत खल रही है


तेरे सपनो में खोने से

अब डर लगता है


लेकिन,

कोई कह गया

ये रात ढल रही है


पर दिल में वो इक एहसास

आज भी पल रही है


सब जज्बातों का खेल है

धीरे धीरे मेरी उम्मीदें भी ढल रही है


और मैं भी

राफ्ता राफ्ता ढल !!!!!!!!!


---- सुनिल #शांडिल्य

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