Saturday, December 11, 2021

 रिवाज-ए-रस्मों में घुट रही जिन्दगी

दिल कही, कही और रुकी जिन्दगी


बेजुबाँ सी होकर रह गई है जिन्दगी

ख्वाहिशों को चूर-चूर करती जिन्दगी


खुले आसमान तले हवा बन्द जिन्दगी

दास्तान-ए-दिल लिख रही है जिन्दगी


खामोशियों के शोर में बोर है जिन्दगी

कोई समझ नही पाया क्या है जिन्दगी 


---- सुनिल #शांडिल्य

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