रिवाज-ए-रस्मों में घुट रही जिन्दगी
दिल कही, कही और रुकी जिन्दगी
बेजुबाँ सी होकर रह गई है जिन्दगी
ख्वाहिशों को चूर-चूर करती जिन्दगी
खुले आसमान तले हवा बन्द जिन्दगी
दास्तान-ए-दिल लिख रही है जिन्दगी
खामोशियों के शोर में बोर है जिन्दगी
कोई समझ नही पाया क्या है जिन्दगी
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment