मैं लिखूं जब भी कोई नज़्म
तुम उन नज्मों में बस जाना
मैं लिखूं जब भी कोई कविता
तुम उनमें अहसास बन जाना
नजरों में इतना नेह रखना
पलकों पे महसूस तुम होना
राह मेरी तेरी ओर ही जाए
ऐसी डोर में तुम बांध लेना
रहना भले ही तुम दूर मुझसे
जब सोचूं तो पास चली आना !
---- सुनिल #शांडिल्य
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