Tuesday, June 14, 2022

 तुम्हारी मुस्कान,इतनी चंचल

जैसे रेत में पड़ा कहीं जल


विरले ही होंगे जगत में ऐसा हुस्न

समक्ष जिनके चंद्र ने डाला हो शस्त्र


तुम्हारी सुंदरता का क्या बखान करूं

मन करे की विस्तृत व्याख्यान करूं


पर मन दगा कर जाता उंगलियां हैं थम जाती

और आंखें मेरी रही एकटक निहारती तुझे


---- सुनिल #शांडिल्य

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