ढलता दिन
बेताब करती
मिलने की तमाम
कोशिशें नाकाम करती
मद्धम मद्धम हवाएं
शाम को तेरा हाल सुनाती
चाय की चुस्की संग
लिखने जो मैं बैठुं
चाय ठंडी पड़ जाती
कलम अल्फ़ाज़ भूल जाती
दिल आशिकाना
कहाँ धड़कनो का ठिकाना
उछलती-कूदती ख्वाइशें
रूह मे गूंजते तराने
बस तेरा ठिकाना
मेरी नजर खोजती
---- सुनिल #शांडिल्य
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