Tuesday, June 7, 2022

 ढलता दिन

बेताब करती


मिलने की तमाम

कोशिशें नाकाम करती


मद्धम मद्धम हवाएं

शाम को तेरा हाल सुनाती


चाय की चुस्की संग

लिखने जो मैं बैठुं

चाय ठंडी पड़ जाती

कलम अल्फ़ाज़ भूल जाती


दिल आशिकाना

कहाँ धड़कनो का ठिकाना

उछलती-कूदती ख्वाइशें

रूह मे गूंजते तराने


बस तेरा ठिकाना

मेरी नजर खोजती 


---- सुनिल #शांडिल्य

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