माहौल नशीला
मंच सजीला
बुन रहा कोई ख्वाब
चुपके-चुपके
दबे पांव आयी बलखाती
पास आकर
कानो में कुछ गुनगुनाई
चांद की किरणों सी
जगमगाती वो पल हर पल
आहिस्ते-आहिस्ते
नाजों से बुनती कोई ख्वाब
राफ्ता राफ्ता सिहरता गया
उसके पहलू मे सिमटता गया
जैसे चांद जमी पे उतरा
और आगोश मे मुझे ले रहा
---- सुनिल #शांडिल्य
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