Thursday, June 9, 2022

 माहौल नशीला

मंच सजीला

बुन रहा कोई ख्वाब


चुपके-चुपके

दबे पांव आयी बलखाती

पास आकर

कानो में कुछ गुनगुनाई


चांद की किरणों सी

जगमगाती वो पल हर पल


आहिस्ते-आहिस्ते

नाजों से बुनती कोई ख्वाब 


राफ्ता राफ्ता सिहरता गया

उसके पहलू मे सिमटता गया


जैसे चांद जमी पे उतरा

और आगोश मे मुझे ले रहा 


---- सुनिल #शांडिल्य

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