Friday, July 15, 2022

 कुछ कहे, अनकहे, कुछ हृदय में रहे,

इस निशा के भंवर में समाते रहे।


चांद छिपने लगा, रात के पग थमे,

किन्तु अपने हृदय, गुनगुनाते रहे ।


प्रेम का ज्वार, यूंही घुमड़ता रहा,

सपन अनगिने, लहलहाते रहे।


दो तुम्हारे नयन, दो हमारे नयन,

चार दीपक सदा, जगमगाते रहे।


---- सुनिल #शांडिल्य

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