Monday, September 5, 2022

 काली ज़ुल्फ़ों से घिरा चेहरा

जैसे काले बादलों में पूर्णिमा का चाँद हो


होंठ सुर्ख थे कातिल की भूमिका में

नैनों ने साध रखे थे तीर और कमान


नाक में चमक रही थी ज़ालिम नथनी

दिल कर रहा था घायल उसका लश्कारा


चाल मोरनी सी, हिरनी लजा रही थी

मारे शर्म के दांतों तले तिनका दबा रही थी


---- सुनिल #शांडिल्य

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