काली ज़ुल्फ़ों से घिरा चेहरा
जैसे काले बादलों में पूर्णिमा का चाँद हो
होंठ सुर्ख थे कातिल की भूमिका में
नैनों ने साध रखे थे तीर और कमान
नाक में चमक रही थी ज़ालिम नथनी
दिल कर रहा था घायल उसका लश्कारा
चाल मोरनी सी, हिरनी लजा रही थी
मारे शर्म के दांतों तले तिनका दबा रही थी
---- सुनिल #शांडिल्य
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