चांद सितारे
सभी तुम्हारे है,
क्यूँ ना फिर मगरूर रहो?
तुम हर
महफ़िल की रौनक
हो, सब आंखों का नूर रहो
तुम अपनी
मशहूरी पर जी
भर के इतरा लो - लेकिन :
ये हक़ किसने
दिया तुम्हें कि
तुम यूँ मुझसे भी दूर रहो
----- सुनिल श्रीगौड
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