संवारू कितना भी मैं हर पल बिखर ही जाती हैं
ये उम्मीद तेरे आने की मुझे कितना सताती हैं
पथ जो भुला राही अब वो भटक रहा है राहों में
मैं निहारु हर पल राहे तू क्यो न आये पनाहों में
जिद तेरी ये ना है अच्छी कुछ तो तुम दो सहारा
डूब रही हैं सांसे मेरी भवसागर में मुझे उतारा
---- सुनिल #शांडिल्य
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