रास न आयी वफ़ा हमारी
क्या थी बोलो ख़ता हमारी
साथ मिला तो हमसफ़र बने
फ़िर क्यूं हूई रज़ा हमारी
यादें पिछ़ा न छ़ोड़ती है
तनहाई है कज़ा हमारी
चैन गया जिंदगी विरानी
जीना जैसे सज़ा हमारी
फेर लिया मुंह बहार ने भी
दर्दभरी दास्तां हमारी
सोच सुमा का दिल भर आया
बेजूबां सी जुबां हमारी
---- सुनिल #शांडिल्य
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