Thursday, November 3, 2022

धरा तुम कितनी मनोहर
प्रकृति की अनुपम धरोहर
हृदय में अपने समेटे
हिमशिखर,मरूधर,सरोवर।

तुम कभी श्रंगार करतीं
इन्द्रधनुषी बन गगन में
फिर कभी मनुहार करतीं
तितली बन उड़ती गगन में।

वन कहीं,उपवन कहीं
है चंचला सा मन तेरा
ताप भी है,शीत भी है
उघरा कहीं है तन तेरा।

---- सुनिल #शांडिल्य

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