शब्द जाल में उलझ ना पाऊँ,
उलझ जाऊं तेरे केश जाल में।
अधरों की लाली में लय होकर,
विलय होऊं संगीत ताल में।।
कुंज गलिन में क्यों फिरती हो?
बसा हुआ हूँ हिय तिहारे।
भावों के आगोश में देखो ,
लिए हुए हूँ भाव तिहारे।।
शब्दों के मैं अर्थ ना जानूँ,
भाव व्यंजना को पहचानूँ।
शब्द हुए निस्तब्ध सभी,
तुझको ही सर्वस्व मानूँ।।
सूनी सूनी आँखों में भी,
प्रेम को तेरी मैं पहचानूँ।
बसी हुई है छवि सलोनी ,
कैसे तुझको अलग में जानूँ।।
देह तो मेरी प्राणप्रिया तुम!
तुम ही जीवन का आधार।
तेरे बिन अधूरा राधे!
कृष्ण तत्व का यही है सार।।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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