तुम पर निर्भर, तुम जो चाहो वो ही इनका अर्थ निकालो
लिखता हूँ मैं शब्द हवा के झीलों में ठहरे पानी के
और पलों के जिनमें पाखी उड़ने को अपने पर तोले
तुम सोचो तो संभव वे पल होलें किसी प्रतीक्षा वाले
शब्द उच्छ्रुन्खल आवारा हैं इधर उधर भटका करते हैं
तुम पर निर्भर तुम चाहो तो गीत बना कर इनको गा लो
मेरे शब्द गुंथे माला में फूलों की लिख रहे कहानी
तुमको उनमें पीर चुभन की दिखी और हो जाती गहरी
शब्दों ने था लिखा झुका है मस्तक कोई देवद्वार पर
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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