आ गए पत्ते नए..
शरद के जाते ही मौसम,
ने है बदली रंग है..
मौसमें गुलज़ार है अब,
फिज़ा में फैली बहार है..
कोयल की कहीं कुक गूंजे,
कहीं गूंजे चिडियों की कलरव..
प्रकृति देखो हुई जवां है,
धरती ओढ़ी पीली चादर..
फागुन ने मदहोश किया,
सब पर चढ़ गया जवानी का रंग..
~~~~ सुनिल शांडिल्य
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