बड़ी फुर्सत से आए तुम चलो इक चाय हो जाए
कहाॅं थे इतने दिन तुम गुम चलो इक चाय हो जाए
पुराने हो चुके रिश्तों में डालो तुम नई इक जाॅं
न बैठो यैसे तुम गुम सुम चलो इक चाय हो जाए
नई रंगत नई खुशबू फिज़ा भी सर्द थोड़ी है
मिलें मुद्दत में हम तुम चलो इक चाय हो जाए
हसी मौसम जवॉं है रूत बारिश हो रही मध्यम।
है चाहत का कलर कुमकुम चलो इक चाय हो जाए।।
किचन में फैली भीनी-भीनी सी उस चाय की खुशबू।
हिलाते दोस्त आए दुम चलो इक चाय हो जाए।।
नशे में झूमती है #शांडिल्य देखो आज पुरवाई।
तेरे लब है या कोई ख़ुम चलो इक चाय हो जाए।।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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