इस जमाने के साँचे में ढलते नही
जीवन कश्ती की परवा करें क्यूँ भला
मौजों के हम इशारों पे चलते नहीं
चाहो तुम परख लो कभी भी हमें
वक़्त कैसा भी हो हम बदलते नहीं
चढ़े देव में,अर्थी में,या गुँथे सेहरे में
गुल कभी अपनी ख़ुशबू बदलते नही
आन के ही लिए है समर्पित यह तन
हम जयचंदों के सायें में पलते नहीं
प्रेम करना है तो सबसे निःस्वार्थ कर
स्वार्थ के दीप ज्यादा दिन जलते नहीं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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